स्पिनोजा का द्रव्य सिद्धांत
स्पिनोजा भी देकार्ते की तरह बुद्धिवादी दार्शनिक हैं। एथिक्स इनका प्रसिद्ध ग्रंथ है। जिसमें इन्होंने ज्यामितीय पद्धति से अपनी विचारधारा का विवेचन किया है। वह सबसे पहले एक परिभाषा रखते हैं। फिर उस परिभाषा से निश्चित निष्कर्षों को निगमित करते हैं। जैसे ज्यामिती में पहले त्रिभुज, चतुर्भुज आदि किसी रेखागणितीय आकृति की परिभाषा की जाती है और उसके बाद उसकी विशेषताओं का निगमन उसी परिभाषा से किया जाता है।
द्रव्य सिद्धांत
देकार्ते ने दो द्रव्यों की सत्ता को स्वीकार किया है। उनके अनुसार आत्मा और शरीर दो तरह के द्रव्य होते हैं। विचार आत्मा का गुण है जबकि विस्तार शरीर या जड़ पदार्थों का गुण है। परंतु स्पिनोजा ने देकार्ते के द्वैतवाद को अस्वीकार दिया। उनके अनुसार द्रव्य का द्वैत असंगत विचार है। एक से अधिक द्रव्य हो ही नहीं सकते। स्पिनोजा द्रव्य को इस तरह परिभाषित करते हैं :-
“द्रव्य से मेरा तात्पर्य उससे है जो स्वयं से है (स्वयं-भू), स्वयं से अवधारित है, अलग शब्दों में जिसका अवधारण, किसी भी अन्य अवधारणा से मुक्त है।”
एथिक्स 1/3
सरल शब्दों में कहें तो द्रव्य वह है जो अपनी सत्ता और ज्ञान के लिए किसी दूसरे पर निर्भर न होकर स्वतंत्र है। द्रव्य की सभी विशेषताओं का इस परिभाषा से निगमन हो जाता है।
- द्रव्य स्वयं से है, स्वयं-भू है, अकारण है।
- अपनी उत्पत्ति और स्थिति के लिए किसी दूसरे पर आश्रित नहीं है इसलिए निरपेक्ष और स्वतंत्र है।
- द्रव्य एक और अद्वितीय है।
- सीमित तत्व निरपेक्ष और स्वतंत्र नहीं हो सकते इसलिए द्रव्य सर्वव्यापी है।
- असीमित है।
- अपरिमित है।
- देश काल से परे नित्य है।
- निर्गुण एवं निर्वैयक्तिक है।
- द्रव्य स्वयं प्रकाश्य है, स्वयं सिद्ध है।
- द्रव्य पूर्ण है। निष्काम और निष्प्रयोजन है।
स्पिनोजा का यह एकमेव द्रव्य ईश्वर ही है। चूंकि द्रव्य या ईश्वर हर जगह व्याप्त है। सब कुछ ईश्वर है या ईश्वर ही सब कुछ है। इसलिए स्पिनोजा का दार्शनिक विचार सर्वेश्वरवाद कहलाता है।
समीक्षा
स्पिनोजा के अनुसार विविधता से पूर्ण यह विश्व ‘द्रव्य’ के स्वाभाविक विकास का परिणाम है। यह सृष्टि किन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रख कर सृष्टिकर्ता के संकल्प से नहीं बनी है। बल्कि स्वत: विकसित और यांत्रिक है। यह यांत्रिक है इसलिए इसमें मानवीय प्रयासों से इच्छित परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं है। यह घोर नियतिवाद व्यक्ति के संकल्प की स्वतंत्रता का खंडन करता है।
स्पिनोजा विश्व की समस्त विविधताओं को एक मात्र द्रव्य में समेट देते हैं लेकिन वह इस विचार की कभी व्याख्या नहीं कर सके कि कैसे और किस प्रक्रिया से द्रव्य विश्व के रूप में विकसित होता है। अतः हीगेल का यह आक्षेप सही लगता है कि स्पिनोजा का द्रव्य शेर की गुफा की तरह है जहां जानवरों के जाने के निशान तो हैं लेकिन वापस आने के नहीं।
स्पिनोजा का एक, अद्वितीय, सर्वव्यापी, निरपेक्ष और निर्वैयक्तिक द्रव्य की अवधारणा भक्ति-भावना पर आधारित धार्मिक आस्थाओं के विपरीत है जो उन्हें वेदांत के ब्रह्म विचार के करीब लाती है।
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