मौर्य वंश 323 ई. पू. से 184 ई. पू.
जानकारी के स्रोत: विष्णुगुप्त चाणक्य कौटिल्य लिखित अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ से मौर्यों के प्रशासन तथा चन्द्रगुप्त मौर्य के व्यक्तित्व पर प्रकाश पड़ता है।
अन्य ग्रंथों में:
कथासरित्सागर – सोमदेव
वृहत्कथामंजरी – क्षेमेन्द्र
महाभाष्य – पतंजलि
कल्पसूत्र – भद्रबाहू
आदि महत्वपूर्ण है।
विदेशी विवरणकारों में स्ट्रैबो तथा जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सैन्ड्रोकोट्स कहा है।
पुरातात्विक सामग्रियों में काली पॉलिश वाले मृदभांड तथा चांदी और ताम्बे के आहत (punch marked) सिक्के मुख्य हैं जो बुलन्दीबाग, कुम्हरार, पटना, जयमंगलगढ़ आदि जगह से प्राप्त हुए हैं।
- “मौर्य साम्राज्य के रूप में पहली बार भारत में एक अखिल भारतीय साम्राज्य का निर्माण हुआ, मौर्य राजवंश में चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार एवं अशोक जैसे महान शासक हुए; जिनके प्रयासों से राज्य का सर्वांगीण विकास हुआ। राजनीतिक प्रणाली में अपेक्षाकृत अधिक एकरूपता आ गई।”
अभिलेख
अशोक के 14 शिलालेख जो कालसी (देहरादून), मन्सेरा (हजारा), शाहबाजगढ़ी (पेशावर), गिरनार (जूनागढ़, गुजरात), सोपारा (थाना), एरागुड़ी (कुर्नुल), धौली (पूरी), जौगढ़ (गंजाम), रूपनाथ (जबलपुर), सासाराम (शाहाबाद), ब्रह्मगिरी, गविमठ, जतिंगा, मस्की (रायचूर), गुज्जर्रा आदि स्थानों पर प्राप्त हुए हैं।
मौर्य वंश की स्थापना
चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई. पू. से 298 ई. पू.):
चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्द शासक घनानंद को पराजित कर 25 वर्ष की आयु में चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध का सिंहासन प्राप्त किया और उसने प्रथम अखिलभारतीय सम्राज्य की स्थापना की। 305 ई. पू. में यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया तथा काबुल, हेरात, कंधार, बलूचिस्तान, पंजाब आदि क्षेत्र उससे ले लिया। सेल्यूकस ने अपने पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया तथा मेगास्थनीज को राजदूत के रूप में उसके दरबार में भेजा। चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन मुनि भद्रबाहू से दीक्षा ले ली और श्रवणबेलगोला (मैसूर) जाकर 298 ई. पू. में उपवास (सल्लेखन) द्वारा शरीर त्याग दिया।
बिन्दुसार (298 ई. पू. से 272 ई. पू.):
चन्द्रगुप्त मौर्य उसका पुत्र बिन्दुसार शासक बना। यूनानी लेखों में इसे अमित्रोचेट्स (अमित्रघात) कहा गया है। वायुपुराण में भद्रसार तथा जैन ग्रन्थों में सिंहसेन कहा गया है।
मिश्र के नरेश फिलाडेलफस (टालेमी द्वितीय) ने डायनेसियस तथा सीरियाई शासक एन्टियोकस ने डायमेकस को दूत के रूप में भेजा।
बिन्दुसार ने संभवतः मौर्य साम्राज्य का दक्षिण में विस्तार किया।
अशोक (273 ई. पू. 232 ई. पू.):
मस्की तथा गुज्जर्रा के अभिलेखों में अशोक के नाम का उल्लेख मिलता है। अन्य अभिलेखों में उसे देवानाम्पिय तथा पियदस्सी कहा गया है। अशोक ने कश्मीर और खोतान को जीता। राज्याभिषेक के आठवे वर्ष में (261 ई. पू.) कलिंग पर आक्रमण किया। कलिंग युद्ध के बाद उपगुप्त के प्रभाव में आकर अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। तथा धम्म प्रचार में ध्यान देने लगे। अशोक ने मनुष्य की नैतिक उन्नति हेतु जिन आदर्शों का प्रतिपादन किया उन्हें धम्म कहा गया। राज्याभिषेक के 14 वे वर्ष में धम्ममाहमात्र नामक अधिकारीयों की नियुक्ति की। अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है। पश्चिमोत्तर के मनसेरा और शाहबाजगढ़ी से प्राप्त अभिलेख अरामाइक तथा खरोष्ठी लिपि में है। अशोक के अभिलेखों को सबसे पहले 1837 ई. में जेम्स प्रिन्सेप ने पढ़ा।
मौर्य साम्राज्य का पतन
अशोक के बाद उसका पुत्र कुणाल राजा बना। कुणाल के बाद दशरथ ने शासन किया। अंतिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या उसके ब्राह्मण मंत्री तथा सेनानायक पुष्यमित्र शुंग ने कर दी।
और पढ़ें: मौर्य प्रशासन
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