भारत की मिट्टियाँ : प्रकार, वितरण एवं विशेषताएं
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने भारत की मिट्टियों का उनकी प्रकृति और गुणों के आधार पर निम्नलिखित आठ प्रकारों में वर्गीकरण किया है।
जलोढ़ मिट्टी
वितरण क्षेत्र :- उत्तरी विशाल मैदान, पूर्वी तट के डेल्टाओं और नदी घाटियों में यह मिट्टी पायी जाती है।
क्षेत्रफल :- जलोढ़ मिट्टी 1,30,372.90 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है जो कुल भारत भूमि का लगभग 40% (39.74%) है।
प्रकृति :- नदियों द्वारा वाहित और निक्षेपित अवसाद से यह मिट्टी बनी है। यह नदी कछारों में पायी जाती है इसलिए इसे कछारी मिट्टी भी कहते हैं।
प्रकार :
गठन :- बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी। पश्चिम में अधिक बलुई है जबकि गंगा के मैदान और ब्रह्मपुत्र घाटी में अपेक्षाकृत मृण्मयी (क्ले अधिक) है।
रासायनिक संरचना :- इसमें पोटाश और चूने (कैल्शियम) की मात्रा अधिक होती है। नाइट्रोजन, फास्फोरस और ह्यूमस की कमी होती है।
रंग :- हल्के धूसर से राख धूसर।
काली मिट्टी
क्षेत्र :- दक्कन का पठार। जिसमें महाराष्ट्र का विदर्भ, दक्षिण पूर्वी गुजरात, दक्षिण पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी मध्यप्रदेश के मालवा का पठार, उत्तरी कर्नाटक, उत्तरी आंध्र प्रदेश और उत्तर पश्चिम तमिलनाडु आते हैं। काली मिट्टी का सबसे अधिक क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य में पड़ता है।
क्षेत्रफल :- 28.08%
प्रकृति :- चिकनी, चिपचिपी।
गठन :- काली मिट्टी ज्वालामुखी के लावा या बेसाल्ट के टुटने फुटने (अपकर्षण) से बनती है। इसमें क्ले की मात्रा अधिक होती है। इसलिए इसकी जलधारण क्षमता अधिक होती है। इसलिए वर्षा आधारित फसलों के लिए उपयुक्त है।
काली मिट्टी गीली होने पर फैल जाती है और सूखने पर सिकुड़ जाती है। जिससे इस मिट्टी में ग्रीष्म काल में बड़ी बड़ी दरारें पड़ जाती है। अतः काली मिट्टी को स्वत: जुताई वाली मिट्टी कहते हैं।
रासायनिक संरचना :- चूना, लोहा, मैगनिशिया, पोटाश और ऐलुमिना की प्रचुरता होती है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और ह्यूमस (जैव पदार्थ) की कमी होती है।
रंग :- गाढ़े काले से स्लेटी रंग। लौह तत्व की अधिकता के कारण इसका रंग काला होता है।
फसल :- कपास, सोयाबीन और दलहन की खेती के लिए उपयुक्त है।
अन्य नाम :- रेगुर, कन्हार।
लाल एवं पीली मिट्टी
वितरण क्षेत्र :- अरावली क्षेत्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में महानदी का मैदान।
निर्माण :- यह ग्रेनाइट और नीस के विखंडन से बनी है।
प्रकृति :- यह अम्लीय मिट्टी है इसलिए चूने का उपयोग इसकी उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता है।
रंग :- लौह आक्साइड की उपस्थिति के कारण इसका रंग लाल होता है। जल योजित होने से इस मिट्टी का रंग पीला दिखता है।
फसल :- मोटे अनाज, दलहन, तिलहन। सिंचाई की सुविधा होने पर यह मिट्टी धान की फसल के लिए बहुत उपयुक्त है।
प्रकार :- यह दो तरह की होती है। एक महीन कणों वाली जो सामान्यतः उपजाऊ होती है। दूसरी उच्च भूमियों में पायी जाने वाली मोटे कणों वाली लाल पीली मिट्टी। यह उपजाऊ नहीं होती।
लेटेराइट मिट्टी
वितरण क्षेत्र :- पूर्वी और पश्चिमी घाट, राजमहल की पहाड़ियां, केरल, कर्नाटक, ओडिशा के पठारी भाग। भारत में लैटेराइट मिट्टी का सबसे अधिक क्षेत्र केरल में है।
निर्माण :- ऊष्ण कटिबंधीय अधिक वर्षा के कारण क्ले, चूना और रेत कण बह जाते हैं तथा लौहे के आक्साइड और एल्युमिनियम के यौगिक बचे रहते हैं। उच्च तापमान में पनपने वाले जीवाणुओं द्वारा ह्यूमस को नष्ट कर दिया जाता है।
प्रकृति :- अम्लीय।
रासायनिक संरचना :- लोहे और पोटाश की अधिकता।
नाइट्रोजन, फास्फोरस और कैल्शियम की कमी होती है।
फसल :- चाय।
शुष्क मिट्टी या मरुस्थलीय मिट्टी
वितरण क्षेत्र :- राजस्थान, सौराष्ट्र, कच्छ, हरियाणा।
गठन :- यह बलुई मिट्टी है।
रासायनिक संरचना :- इसमें लोहा और फास्फोरस की अधिकता होती है। नाइट्रोजन और ह्यूमस की कमी होती है।
फसल :- ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज।
लवणीय मिट्टी
वितरण क्षेत्र :- तटीय क्षेत्रों में। गुजरात, पूर्वी तट और सुंदरवन।
निर्माण :- समुद्र तटीय इलाकों में उच्च ज्वार के समय समुद्र के खारे जल का भूमि पर फैल जाने से यह मिट्टी बनी है।
गठन :- बलुई और दोमट।
संरचना :- सोडियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम के लवणों की अधिकता होती है।
नाइट्रोजन और चूने की कमी होती है।
प्रकृति :- क्षारीय।
फसल :- बरसीम, धान, अमरूद, आंवला आदि।
पीटमय मिट्टी
वितरण क्षेत्र :- अल्मोड़ा, सुंदरवन डेल्टा, केरल का एल्लपी क्षेत्र।
निर्माण :- दलदली क्षेत्रों में काफी अधिक मात्रा में जैविक पदार्थों के जमाव से यह मिट्टी बनती है।
संरचना :- 40 – 50% तक ह्यूमस होता है।
प्रकृति :- अम्लीय (ह्यूमिक एसिड), कहीं कहीं क्षारीय होती है।
रंग :- गाढ़ा और काला होता है।
वन क्षेत्र की या पर्वतीय मिट्टी
वितरण क्षेत्र :- प्रर्याप्त वर्षा वाले वन क्षेत्र।
गठन :- घाटियों की वन मिट्टी में जैव तत्व या ह्यूमस की अधिकता होती है लेकिन पहाड़ी ढलानों में ह्यूमस कम होता है। यह नयी मिट्टी होती है जो निर्माण की प्रक्रिया में है।
प्रकृति :- अम्लीय।
पोटाश, फास्फोरस और कैल्शियम की कमी होती है।
फसल :- सेब, चाय, कहवा, मसाले आदि बागवानी फसलों के लिए उपयुक्त है।
सार-संक्षेप
- जलोढ़ मिट्टी नदी कछारों में अवसादों के निक्षेपण से बनी मिट्टी है।
- जलोढ़ भारत की कुल मृदा का 40% है।
- काली मिट्टी की जलधारण क्षमता अधिक होती है।
- यह कपास की खेती के लिए उपयुक्त है।
- काली मिट्टी में गर्मी में गहरी दरारें पड़ जाती हैं इसलिए इसे स्वत: जुताई वाली मिट्टी भी कहते हैं। रेगुर इसका अन्य नाम है।
- दक्कन का पठार, मालवा का पठार काली मिट्टी के क्षेत्र में आते हैं।
- काली मिट्टी का सबसे बड़ा क्षेत्र महाराष्ट्र में है।
- लैटराइट ईंट बनाने की मिट्टी है। इसमें चाय की खेती की जाती है।
- लैटराइट मिट्टी सबसे अधिक केरल में पायी जाती है।
मिट्टियाँ और उनके बनने की क्रियाविधि
- जलोढ़ मिट्टी – नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेपण से।
- काली मिट्टी – बेसाल्ट या लावा के अपक्षयण से।
- लाल पीली मिट्टी – ग्रेनाइट और नीस के विखंडन से।
- लैटराइट मिट्टी – चूना और रेत के निक्षालन से।
- वनीय मिट्टी – पर्वतों के अपरदन और वनस्पतियों के अवशेषों से।
- मरुस्थलीय मिट्टी – व्यापक अपरदन से।
- लवणीय मिट्टी – उच्च ज्वारों से मृदा का लवणीय होना।
- पीट मिट्टी – दलदली मिट्टी।
मिट्टियाँ और फसल उपयुक्तता
जलोढ | गहन खेती |
काली | कपास |
लाल पीली | धान |
वनीय मिट्टी | काफी, काजू, मसाले। |
मरुस्थलीय शुष्क मिट्टी | ज्वार-बाजरा (मोटे अनाज) |
लवणीय मिट्टी | अनुपजाऊ। बरसीम, आंवला, अमरूद। |
भारत की मिट्टियाँ और उसके क्षेत्र
जलोढ | उत्तरी विशाल और तटवर्ती मैदान। |
काली | दक्कन का पठार, मालवा, महाराष्ट्र, गुजरात। |
लाल पीली | ओडिशा, छत्तीसगढ़ का मैदान। |
वनीय मिट्टी | पर्वतीय ढलान। |
मरुस्थलीय शुष्क मिट्टी | राजस्थान, कच्छ और सौराष्ट्र। |
लवणीय मिट्टी | गुजरात और पश्चिमी तटीय क्षेत्र। |
लैटेराइट | केरल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के पठार। |
पीट या जैविक मिट्टी | अल्मोड़ा, सुंदरवन। |
Uttar Pradesh me kon si mitti pai jave
Lal mitti kis raj me sabshe adhik pai jati hai
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