चार्वाक दर्शन
चार्वाक दर्शन भौतिकवादी विचारधारा है। इसे लोकायत दर्शन भी कहा गया है। लोकायत का अर्थ है लोक में , जनता में व्यापक रूप से प्रचलित। सरल शब्दों में कहा जाए तो यह लोकप्रिय दर्शन था। इसके सिद्धांत जनता को अच्छे लगते थे।
चार्वाक शब्द का एक अन्य अर्थ चारु+वाक् अर्थात मीठे बोल से भी लगाया जाता है जो लोगों को अच्छे लगते थे। इसके प्रणेता चार्वाक या बृहस्पति माने गए हैं। चार्वाक मत का अपना कोई ग्रंथ अभी तक प्राप्त नहीं है। इसके विचारों को जानने के लिए विरोधियों की टिप्पणियों पर निर्भर रहना पड़ता है।
ज्ञान का सिद्धांत:
चार्वाक दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण है। जिसे हम देख सकते हैं, छू सकते हैं, सुन सकते हैं या सूंघ सकते हैं एकमात्र वही सही है। जिनका प्रत्यक्ष नहीं हो सकता ऐसी चीजों को सत्य नहीं माना जाना चाहिए। संसार की वस्तुओं का हमारी ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से ही बोध होता है और यही ज्ञान का एक मात्र स्रोत है। हमारे पास प्रत्यक्ष के अलावा ज्ञान प्राप्त करने का कोई दूसरा विश्वसनीय साधन नहीं है। चार्वाक के अतिरिक्त अन्य दर्शन अनुमान को भी प्रमाण मानते हैं लेकिन चार्वाक के अनुसार अनुमान एक अटकल मात्र है जो कभी-कभी सही भी हो जाता है। इसलिए अनुमान को ज्ञान प्राप्त का विश्वसनीय साधन नहीं माना जा सकता।
चार्वाक दर्शन में शब्द प्रमाण को भी स्वीकार नहीं किया गया है।
तत्त्वमीमांसा
चार महाभूत (तत्व):
भारतीय दर्शन के अन्य मुख्य सम्प्रदाय पांच महाभूतों के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। वे मानते हैं कि पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से विश्व की सृष्टि हुई है। इनके विपरीत चार्वाक दर्शन केवल चार तत्त्वों को मानते हैं। चार्वाक पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि इन चार महाभूतों को स्वीकार करते हैं। आकाश का प्रत्यक्ष नहीं होता। तथाकथित आकाश तत्व किसी भी ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से ग्राह्य नहीं है इसलिए आकाश का कोई अस्तित्व नहीं माना जा सकता।
भौतिकवाद:
न स्वर्गो नापवर्गो वा नैवात्मा पार्लौकिक:।
चार्वाक मत के अनुसार स्थायी/अनश्वर कहे जाने वाले किसी आत्मा-परमात्मा आदि का प्रत्यक्ष नहीं होता इसलिए इनका अस्तित्व नहीं माना जा सकता। विश्व चार तत्त्वों का संघात है। जीवन और चेतना की उत्पत्ति भी चार महाभूतों के विशेष संयोजन से संयोगवश हो जाती है। जैसे कत्था, चूना आदि के संयोग से पान में लाल रंग पैदा हो जाता है वैसे ही जड़-तत्वों में चैतन्य उत्पन्न होता है।
और पढ़ें: चार्वाक दर्शन का सुखवादी नीतिशास्त्र
सुखवाद
चूंकि अनश्वर आत्मा जैसी कोई चीज नहीं होती और स्वर्ग, नर्क और पुनर्जन्म की अवधारणा कपोल-कल्पित है इसलिए मरण ही मोक्ष है। इस कारण चार्वाक का उपदेश है कि जब तक जीओ सुख से जीओ, उधार करके भी घी पीओ क्योंकि एकबार राख हो जाने के बाद यह शरीर फिरसे वापस नहीं आ सकता।
यावत् जीवेत सुखं जीवेत।
ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत।।
भस्मीभूतस्य देहस्य।
पुनरागमनं कुत:?
The second line of
Yavajjivam sukham jeevet,
Rhinam kritva ghritam pibet|
bhasmeebhutasya dehasya,
punaraganam kutah||,
namely “Rhinam kritva ghritam pibet” is a twisted version of its original line.
Can you please share the original line as well?
Sadly, we learn about Lokayat from its critics. We do not have the original line.
This post is written from the examination perspective and is based on what is generally accepted by the examiners 🙂
This quote was manipulated to defame this scientific temper of Charvak school of thought.