सल्तनत कालीन वास्तुकला

सल्तनत कालीन वास्तुकला

सल्तनत कालीन वास्तुकला में इस्लामी शैली और भारतीय शैली का सुंदर समन्वय दिखाई देता है। प्राचीन भारतीय इमारतों को सजाने के लिए उनमें सुंदर आकृतियां और तस्वीरें उकेरी जाती थीं, जबकि इस्लामी वास्तुकला सादी और सजावट के बिना होती थी। तुर्कों ने भारत में आने के बाद यहां के कारीगरों की सेवाएं लीं। इन देशी कारीगरों ने भारतीय-इस्लामी वास्तुकला का विकास किया।

गुलाम वंश

मामलूक तथा खिलजी सुलतानों की वास्तुकला मध्यकालीन वास्तुकला के विकास का पहला चरण माना जाता है।

कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद : पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद किला रायपिथौरा को राजधानी में परिवर्तित किया गया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली विजय के उपलक्ष में तथा इस्लाम धर्म प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से इस स्थान पर एक मस्जिद बनाने का कार्य प्रारंभ किया। जिसे कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कहा जाता है। कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद हिंदू-मुस्लिम शैली की प्रथम इमारत है। 1230 में इल्तुतमिश ने मस्जिद के प्रांगण को दुगना कराया।

कुतुब मीनार : कुतुब मीनार दिल्ली से 12 मील की दूरी पर महरौली में स्थित है। कुतुबुद्दीन ऐबक तथा इल्तुतमिश ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के अनुयाई थे। उनकी पुण्य स्मृति में इन्होंने कुतुब मीनार का निर्माण कराया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निर्माण कार्य 1206 में प्रारंभ कराया। उसकी योजना 4 मंजिलों की 225 फीट ऊंची मीनार बनवाने की थी। नीचे की परिधि 48 फीट है। ऊपर तक परिधि कम होती गई है। इल्तुतमिश के समय में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। तूफान के कारण जब मीनार को क्षति पहुंची थी तो फिरोज तुगलक ने इसकी मरम्मत कराई थी । 1503 में सिकंदर लोदी ने भी इसकी मरम्मत कराई थी। कुतुबमीनार की प्रथम तीन मंजिल पत्थर की हैं जिनका बाहरी आवरण सफेद पत्थर का है।

अढ़ाई दिन का झोपड़ा : इस मस्जिद को कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर में बनवाया था। विग्रहराज बीसलदेव ने इस स्थान पर एक सरस्वती मंदिर का निर्माण कराया था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई।

सुल्तान गढ़ी : यदि इल्तुतमिश को मकबरा शैली का जन्मदाता कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की स्मृति में सुल्तान ने कुतुबमीनार से 3 मील की दूरी पर मलकापुर में मकबरा बनवाया।

इल्तुतमिश का मकबरा : इल्तुतमिश का मकबरा कुत्बी मस्जिद के पास दिल्ली में है। इसका निर्माण कार्य की कुछ समय 1235 में प्रारंभ किया गया।

खिलजी वंश

खिलजी कालीन वास्तुकला : सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का अधिकांश समय युद्धों व्यतीत हुआ, फिर भी उसने स्थापत्य कला के विकास में विशेष रूचि दिखलाई। दिल्ली के पास सीरी नामक गांव में एक नया नगर बसाया। बरनी ने इसे शहरे नौ अथवा नया नगर कहा। अलाउद्दीन खिलजी की योजना थी कि शहर के बाहर एक सरोवर तथा उसके किनारे भवन का निर्माण कराया जाए। यह स्थान हौज-ए-खास या हौज-ए-रानी के नाम से प्रसिद्ध है।

अलाई दरवाजा : अलाई दरवाजा का निर्माण कार्य अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1310 से 11 ईसवी में प्रारंभ किया गया। इसमें लाल पत्थर तथा संगमरमर का बड़ा ही सुंदर संयोग है। इसके निर्माण में का उद्देश्य कुव्वल-उल-इस्लाम मस्जिद में चार प्रवेश द्वार बनाना था। दो पूर्व में, एक दक्षिण में और एक उत्तर में।

तुगलक कालीन वास्तुकला

तुगलक शासनकाल में सादगी और विशालता पर अधिक जोर दिया गया। इसका प्रमुख कारण आर्थिक कठिनाइयों तथा खिलजी काल में अपव्ययता के प्रति सर्वसाधारण में प्रतिरोध की भावना थी। गयासुद्दीन अपने पूर्वजों की नीति का परित्याग करके सादगी तथा मितव्ययता की नीति अपनाई।

तुगलक काल की इमारतों की नींव गहरी तथा दीवारें मोटी हैं। नींव की दीवारों को मजबूत बनाने के लिए पुश्तों का प्रयोग किया गया है। दीवारें मोटी तथा भद्दी हैं, इनमें मजबूती नहीं है। स्तंभ सादा है, सजावट का काम नहीं हुआ है। इस काल की इमारतें, मस्जिदें तथा दुर्ग की दीवारें मिस्र के पिरामिडों के समान बनी है, जो अंदर की ओर झुकी हुई हैं।

तुगलकाबाद : वंश का संस्थापक गयासुद्दीन तुगलक वास्तुकला का प्रेमी था। उसने दिल्ली के पास ऊंची पहाड़ियों पर एक नया नगर तथा एक दुर्ग का निर्माण कराया। यह दिल्ली के 7 नगरों में से एक है। उसका निर्माण रोमन शैली के आधार पर नगर तथा दुर्ग रूप में हुआ है। यह दुर्ग छप्पन कोट के नाम से प्रसिद्ध है।

जहांपनाह नगर : दिल्ली से दौलताबाद राजधानी परिवर्तन के बाद मोहम्मद तुगलक ने रायपिथौरा और सीरी के मध्य में एक नगर जहांपनाह बसाया।

बारह खंभा : बारह खंबा एक सामंत का निवास स्थान था। यह स्थापत्य शैली का अच्छा नमूना है।

फिरोज तुगलक : सुल्तान फिरोज तुगलक ने अपने पूर्वजों की भांति फिरोजाबाद, फतेहाबाद, हिसार, जौनपुर आदि नगरों को बनवाया। उसकी अमर कीर्ति यमुना नहर है।

फिरोज शाह कोटला : सुल्तान फिरोज तुगलक पांचवी दिल्ली बसाई। उसमें एक महल की स्थापना की जो कोटला फिरोजशाह के नाम से विख्यात है। इसके सामने अशोक स्तंभ है। सुल्तान ने इस विशाल स्तंभ को अंबाला जिले के टोपरा गांव से ला कर यहां गढ़वाया था। एक दूसरे स्तंभ को मेरठ के समीप से लाकर कुश्क-ए-शिकार महल में गढ़वाया। शिक्षा के विकास के लिए उसने एक विद्यालय की स्थापना की।

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