केंद्रीय मुगल प्रशासन
मुगल प्रशासन भारतीय तथा विदेशी प्रणालियों के मिश्रण से बना था। यह भारतीय वातावरण में अरबी फारसी प्रणाली थी।
बादशाह: शासन प्रशासन का सर्वेसर्वा होता था। वह प्रधान सेनापति, न्याय व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी, इस्लाम का संरक्षक तथा जनता का आध्यात्मिक नेता होता था। सिद्धांत रूप में बादशाह की शक्ति असीमित होती थी, परंतु वह अपनी प्रजा की इच्छा का ध्यान रखते हुए स्वयं के द्वारा नियुक्त सलाहकारों की सम्मति से शासन करता था।
वकील ए मुल्क : बादशाह के बाद वकील ही सबसे बड़ा अधिकारी होता था। एक तरह से सभी विभागों का अध्यक्ष होता था। इसे मंत्रियों को नियुक्त करने तथा हटाने का भी अधिकार था। धीरे धीरे इसके अधिकारों में कमी कर दिया गया। बैरम खां के बाद वकील के पद को ही समाप्त कर दिया गया।
दीवान : यह वित्त तथा आर्थिक मामलों के संबंध में बादशाह को सलाह देता था।
मीर बख्शी : यह सैनिक प्रशासन का प्रधान होता था जो सेना में नियुक्ति, वेतन, मनसबदारों की सेनाओं का निरीक्षण आदि कार्य देखता था।मीर बख्शी सेनापति नहीं होता था।
काजी उल कुजात : यह प्रधान काजी या न्यायाधीश होता था जो इस्लामी कानून के आधार पर फैसला करता था।
सद्र उस सुदूर : प्रधान सद्र शाही परिवार के द्वारा विद्वानों, उलेमाओं, फकीरों, साधु संतों आदि को दिए जाने वाले दान और शासकीय सहायता से संबंधित मामलों की देख रेख करता था।
मीर समा : यह राजमहल, हरम (शाही परिवार की महिलाओं का निवास स्थान), रसोई तथा कारखानों का प्रबंधक होते थे।
प्रांतीय शासन
मुगल काल में प्रांतों को सूबा कहा जाता था, अकबर के शासनकाल के अंतिम समय में सूबों की संख्या 15 थी जो औरंगजेब के समय बढ़कर 21 हो चुकी थी।
सूबेदार : यह सूबे का प्रमुख तथा बादशाह द्वारा नियुक्त उसका प्रतिनिधि होता था।
दीवान : सूबे का दीवान सूबेदार के नियंत्रण में नहीं रह कर केंद्रीय दीवान के अधीनस्थ होता था।
इसी प्रकार सूबे का अपना काजी तथा बख्शी भी होता था।
कोतवाल : थाना स्तर पर पुलिस अधिकारी होता था।
जिला मुगल प्रशासन
प्रत्येक सूबा कई जिलों में बंटा होता था। जिला को सरकार कहा जाता था।
फौजदार : जिले का सैनिक अधिकारी होता था जिसके अधीन सैनिकों का एक दल होता था।यह जिले में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होता था।
अमलगुजार : यह जिला स्तर पर राजस्व अधिकारी होता था जो किसानों को कर्ज बांटने तथा वसूल रकम को शाही खजाने में जमा करने का काम करता था।
बितिकची अमलगुजार का सहायक होता था जो कृषि संबंधी रिकॉर्ड और आंकड़े रखता था।
शिकदार परगना का मुख्य अधिकारी होता था।
फोतदार परगने के खजांची को कहते थे।
सैन्य प्रशासन
बादशाह प्रधान सेनापति होता था। सेना के प्रायः तीन रूप थे-
- मनसबदारों की फौजें,
- अहदी वे सिपाही होते थे जिन्हें मनसब में नहीं रखा गया हो, तथा
- राजपूतों की सहायक सेनाएं।
ये सभी सेनाएं युद्ध में बादशाह की ओर से लड़ती थीं।
सेना के पांच विभाग थे-
- पैदल,
- घुड़सवार,
- हाथी,
- तोपखाना में बड़ी भारी तोपें भी होती थी जिन्हें जिन्सी कहा जाता था जबकि दस्ती तोपखाने में हल्की तोपें और बंदूकें होती थीं।
- जलसेना- मुगलों के पास नियमित जलसेना नहीं होती थी। पश्चिमी तट की रक्षा का भार अबीसीनियनों और जंजीरा के सिद्दियों को दे रखे थे।
Mugal kal me sena ka pardhan kiya kahlata tha
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