सर्वदलीय सम्मेलन एवं नेहरू रिपोर्ट 1928

सर्वदलीय सम्मेलन एवं नेहरू रिपोर्ट

साइमन कमीशन में किसी भारतीय को ना रखे जाने के कारण बताते हुए सरकार ने यह कहा कि भारतीयों में पारस्परिक मतभेद अधिक है।

इसी अवसर पर भारत के सचिव लार्ड बर्किंन हेड ने भारतीयों को यह चुनौती दी कि वे कैसे संविधान का निर्माण करें जिससे सभी भारतीय दल सहमत हो।

कांग्रेस ने इस चुनौती को स्वीकार कर सर्वजन सम्मेलन बुलाने का निर्णय लिया कांग्रेस द्वारा बनाया गया सर्वजन सम्मेलन दिल्ली में मार्च 1928 में आरंभ हुआ सभी दलों ने घोषणा कि वे ब्रिटिश सरकार के साथ समझौता वार्ता तभी चलाएंगे जब अधिराज्य देने का वादा किया जाएगा। सर्वदलीय सम्मेलन का तीसरा सम्मेलन मई 1928 में डॉक्टर अंसारी की सदारत में हुआ। उनमें मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त की गई, उसे 1 जुलाई 1928 को पहले भारत के संविधान के सिद्धांतों का एक मसौदा तैयार करने का काम सौंपा गया। इतिहास में यह नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना जाने लगा।

9 सदस्य इस कमेटी के मुख्य सदस्यों में अली इमाम, तेज बहादुर सप्रू और सरदार मंगल सिंह थे। 29 राजनीतिक संगठनों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। इस कमेटी ने अपना मसौदा जुलाई 1928 में प्रकाशित किया। इसका आधार डोमिनियन स्टेटस था। नेहरू रिपोर्ट के मुख्य बिंदु निम्न प्रकार थे:

  • भाषा के आधार पर प्रांतों के गठन का,
  • प्रांतों को स्वायत्त शासन देने की बात कही गई,
  • सारी शक्ति केंद्रीय विधानसभा के प्रति उत्तरदाई भारत सरकार के हाथ में रखी गई,
  • केवल विदेशी मामलों और सुरक्षा को ब्रिटिश नियंत्रण में रखा गया था।
  • अलग सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का विरोध किया गया,
  • सभी बालिगों को मतदान का अधिकार दिया गया।
  • नागरिक अधिकारों के बारे में कहा गया लोगों को भाषण देने, समाचार पत्र निकालने, सभाएं करने, संगठन बनाने आदि की स्वतंत्रता प्राप्त है।

मुस्लिम लीग ने हिंदू मुस्लिम समझौते की सिफारिशों को ठुकरा दिया और प्रस्तावित संविधान को पास करने से इंकार कर दिया बदले में जिन्ना ने अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए मार्च 1929 में एक 14 सूत्री मांग पत्र रखा जिसमें पृथक निर्वाचन केंद्र व प्रदेशों के सीटों का आरक्षण, रोजगार में मुसलमानों के लिए आरक्षण और नए बहुसंख्यक मुस्लिम प्रदेशों की स्थापना प्रमुख मांग थी।

पंडित जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस डोमिनियन स्टेटस से संतुष्ट नहीं थे। वे पूर्ण स्वाधीनता चाहते थे। 1928 के कोलकाता अधिवेशन में कहा गया कि यदि सरकार नेहरू रिपोर्ट 31 दिसंबर 1930 तक स्वीकार नहीं करेगी तो कांग्रेस अहिंसक असहयोग आंदोलन शुरू करेगी लेकिन सुभाष चंद्र बोस एवं जवाहरलाल नेहरू के दबाव के कारण यह समय 31 दिसंबर 1929 से ही कर दिया गया।

महत्वपूर्ण तथ्य

सर्वप्रथम भारत के लिए औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग सर तेज बहादुर सप्रू एवं जयकर ने की थी। क्योंकि यह दोनों नेहरू रिपोर्ट तैयार करने वाली समिति के सदस्य थे। नेहरू रिपोर्ट का आधार औपनिवेशिक स्वराज्य था। औपनिवेशिक स्वराज्य की जगह पूर्ण स्वराज की मांग को प्रभावशाली बनाने के लिए जवाहरलाल नेहरू एवं रास बिहारी बोस ने मिलकर 1928 में भारतीय स्वतंत्रता लीग का गठन किया था।

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