भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक CAG
भारतीय संविधान में एक स्वतंत्र नियंत्रक महालेखा परीक्षक की व्यवस्था की गई है। जिसका कार्य देश की समस्त वित्तीय प्रणाली पर नजर रखना तथा कार्यपालिका के वित्तीय आदान-प्रदान का औचित्य व अनौचित्य व्यय तय करना है।
नियंत्रक महालेखा परीक्षक का उत्तरदायित्व करदाताओं के हितों की सुरक्षा करना है। इस कारण इसे राष्ट्रीय हित का संरक्षक की भी संज्ञा दी गई है। इसी के विपरीत एक बार देखी गई है कि भारत के महालेखा परीक्षक को भारत की संचित निधि से धन के निर्गम पर कोई नियंत्रण का अधिकार नहीं है, किंतु वह बस केवल लेखा परीक्षक का ही कर्तव्य निर्वहन करता है।
भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 5 अनुच्छेद 148 से 151 तक इस पद का वर्णन व इसके कार्यों के दायित्व का वर्णन किया गया है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत भारत का एक नियंत्रक महालेखा परीक्षक होगा। जिसकी नियुक्ति का दायित्व भारत का राष्ट्रपति करेगा।
भारतीय संविधान व नियंत्रक महालेखा परीक्षक अधिनियम 1971 के अनुसार सेवा और शर्तों का विवरण निम्नानुसार है:
- सर्वप्रथम हम जानते हैं कि अनुच्छेद 148 से भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक का पद वर्णित है। अतः अधिनियम 1971 के सेवा शर्तों के अनुसार हम जानते हैं कि नियंत्रक महालेखा परीक्षक को उसके पद से हटाने के लिए दोनों सदनों के बहुमत की आवश्यकता होती है। इसे इसके पद से हटाने के लिए वही रिति अपनाई जाती है, जो रिति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए प्रयुक्त होती है। जो कि अनुच्छेद 148(1) के तहत वर्णित है। भले ही इसका पद राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, किंतु राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत यह अपने कर्तव्यों का दायित्व नहीं निभाता है।
- पद ग्रहण करने पर भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक राष्ट्रपति के समक्ष तीसरी अनुसूची के तहत शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा। जिसका वर्णन अनुच्छेद 148 (2) के तहत वर्णित है।
- भारत के महालेखा परीक्षक की कार्यकाल की अवधि 6 वर्ष तक या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, तक होगी या अपने पद को त्यागने के इच्छुक होने पर वहां राष्ट्रपति को संबोधित कर एक लेख पर हस्ताक्षर कर अपने पद का त्याग कर सकेगा।
- उसका वेतन और सेवा शर्ते वही होगी जो सांसद निधि द्वारा अवधारित करेगी, उसका वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होगा, उसके नियुक्ति के पश्चात उसके वेतन भत्तों व सेवा शर्तों में कोई भी अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा। जोकि अनुच्छेद 148(3) मे वर्णित है। इसके वेतन-भत्ते, पेंशन व प्रशासनिक व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं। नियंत्रक महालेखा परीक्षक अपने पद पर ना रह जाने पर भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी और पद के पात्र नहीं होगा।
नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कार्य और शक्तियों का उल्लेख अनुच्छेद 149 से 151 तक दिया गया है।
- जिसके अनुसार भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक संघ और राज्यों के साथ तथा किसी अन्य पदाधिकारी या निकाय के लेखकों के संबंध में संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन अपने कर्तव्य और शक्तियों का प्रयोग करेगा जो कि अनुच्छेद 149 में दिया गया है। संविधान तथा महालेखा परीक्षक अधिनियम 1971 के अनुसार नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कार्य इस प्रकार है।
- अनुच्छेद 150 के अनुसार संघ और राज्य के लेखन का प्रारूप राष्ट्रपति द्वारा नियंत्रक महालेखा परीक्षक की सलाह से तय किया जाता है।
- अनुच्छेद 151के अनुसार नियंत्रक महालेखा परीक्षक संघ व राज्यों के लिए खातो संबंधी प्रतिवेदनों को क्रमशः राष्ट्रपति व राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करता है तथा राष्ट्रपति उसे संसद के तथा राज्यपाल राज्यों के विधान मंडल के समक्ष रखता है ।
- नियंत्रक महालेखा परीक्षक संघ या राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संचित निधि से सभी प्रकार के व्यक्ति परीक्षा करता है तथा यह प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है कि ऐसे व्यक्ति के अनुसार है अन्यथा नहीं है।
- वह संघ या राज्य के राजस्व द्वारा वित्त पोषित प्राधिकारी और निकायों के प्राप्ति और व्यय की परीक्षा करता है और प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है।
- वह संघ व राज्यों के आकस्मिक निधि और लोक लेखा से हुए व्यय की भी परीक्षा करता है।
Nice sir
thanks