ऋग्वैदिक काल
- समय – 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक
- आर्यों का मूल स्थान मध्य एशिया में बैक्ट्रिया था। यह मैक्समूलर के द्वारा दिया गया सर्वाधिक मान्य मत है।
- बालगंगाधर तिलक के अनुसार आर्य उत्तरी ध्रुव से आये थे।
भौगोलिक विस्तार
- भारत में आर्य सबसे से पहले सप्तसैंधव क्षेत्र में बसे।
- सप्तसैंधव का अर्थ है सात नदियों का देश। ये सात नदियाँ इस प्रकार थी –
- शतुद्री – सतलज
- विपश – व्यास
- परुषणी – रावी
- अस्किनी – चिनाब
- वितस्तता – झेलम
- सरस्वती
- दृश्द्वती – घग्गर
- इनके अलावा आर्य गोमल (गोमती), क्रमु (कुर्रम) एवं सुवास्तु (स्वात) नदियों से भी परिचित थे।
- ऋग्वेद में सबसे ज्यादा सिन्धु नदी का उल्लेख हुआ है जबकि सरस्वती सर्वाधिक पवित्र नदी मानी जाती थी। गंगा नदी केवल एक बार तथा यमुना का तीन बार उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है।
- ऋग्वेद के नदी सूत्र में 21 नदियों का उल्लेख है।
- 4 समुद्रों के बारे में बताया गया है। लेकिन सागर के अर्थ में न होकर जलराशि के अर्थ में समुद्र शब्द का प्रयोग हुआ है।
- इससे स्पष्ट है की आर्य सबसे पहले अफगानिस्तान और पंजाब क्षेत्र में बसे थे।
आर्य हिमालय के एक चोटी (मुंजवंत) जिसमें सोम नामक पौधा प्राप्त होता था, से भी परिचित थे।
राजनीतिक स्थिति
- ऋग्वेदिक काल की शुरुआत में बड़े-बड़े राजतन्त्र नहीं थे बल्कि कबीलों के द्वारा शासन चलता था।
- सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई कुल थी जिसका मुखिया कुलप होता था। कुल से ऊपर ग्राम, विश और जन होते थे।
- ग्राम अर्थात गाँव का कोई निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता था। कई कुल अर्थात परिवार गायों को साथ में लेकर अस्थायी जीवन बिताते हुए घूमते थे। स्थायी क्षेत्र में बसने वाले ग्रामों का उदय ऋग्वेद काल के अंत में हुआ जब पशुपालन की जगह कृषि आर्यों का मुख्य व्यवसाय बना।
- कई ग्रामों के समूह को विश कहा गया है।
- अनेक विश मिलकर जन कहलाते थे।
- एक बड़े प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में जनपद का उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक बार हुआ है जबकि जन शब्द 275 बार आया है।
- जनों के प्रधान को राजन या राजा कहा जाता था। उसे जनस्यगोपा या गोपति (गायों का स्वामी) भी कहा जाता था। वह भूपति (क्षेत्र का स्वामी) बाद में ऋग्वेद काल के अंत में या उत्तर वैदिक काल में कहलाया।
- राजा की सहायता हेतु पुरोहित, सेनानी और ग्रामणी (लड़ाकू दलों का प्रमुख) नामक अधिकारी थे।
- व्राजपति चरागाहों का अधिकारी होता था।
- कोई स्थायी सेना नहीं होती थी और बल (force) की पहचान विश से की जाती थी।
- राजा को किसी प्रकार का नियमित कर नहीं मिलता था। बलि नामक उपहार स्वेच्छा से प्रजा द्वारा दिया जाता था।
- ऋग्वेद काल में राज्य कबीलाई संगठन पर आधारित था और इसका शासन सभा, समिति और विदथ नामक संस्थाओं की सहायता से चलाया जाता था।
- विदथ सबसे प्राचीन संस्था थी, इसका ऋग्वेद में 122 बार उल्लेख हुआ है जबकि समिति का 9 बार और सभा का 8 बार उल्लेख हुआ है।
- सभा वृद्ध जनों एवं कुलीन लोगों की संस्था थी। समिति कबीले की आम सभा होती थी। विदथ के संगठन और कार्यों के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
- ऋग्वेद काल के प्रारंभ में राजा समिति द्वारा चुना जाता था। बाद में राजा का पद अनुवांशिक हो गया।
- आर्यों के भारत आगमन पर उनका दास या दस्यु कहलाने वाले स्थानीय जनों से संघर्ष हुआ। अश्व-चालित रथों के कारण आर्यों को सफलता मिली।
- पाँच प्रमुख कबीले थे जिन्हें पंचजन कहा गया। ये पंचजन थे – पुरु, यदु, तुर्वसु, द्रुहु एवम् अनु।
- ऋग्वेदिक काल में दस राजाओं का युद्ध हुआ जिसे दशराज्ञ युद्ध कहा गया।
- दशराज्ञ युद्ध परुष्णी (रावी) नदी के तट पर हुआ।
- इस युद्ध में भरतवंश के राजा सुदास ने दस अन्य जनों के राजाओं को हराया। पराजित दस राजाओं में 5 आर्य जनों के तथा 5 अनार्य कबीलों के राजा थे।
- दशराज्ञ युद्ध में सुदास के मुख्य पुरोहित वशिष्ठ थे जबकि विश्वामित्र ने दस राजाओं के संघ का समर्थन किया था।
- दशराज्ञ युद्ध में शामिल पांच आर्य जन/कबीले – पुरु, यदु, तुर्वसु, द्रुहु एवं अनु थे जबकि अकिन्न, पक्थ, भलानाश, विषाणी और शिवि अनार्य कबीले थे।
हमारे देश का नाम भारतवर्ष आर्यों के ‘भरतवंशी’ राजा भरत के नाम पर पड़ा।
सामाजिक स्थिति
- ऋग्वेद कालीन सामाजिक संरचना अपेक्षाकृत सरल थी।
- सामाजिक संगठन गोत्र प्रणाली पर आधारित था।
- समाज पितृसत्तात्मक था। परिवार संयुक्त रहता था।
- परिवार तथा समाज में महिलाओं की सम्मानजनक स्थिति थी।
- कन्याओं का उपनयन संस्कार भी होता था। इसका अर्थ है कि उन्हें विधिवत शिक्षा प्रदान की जाती थी। ऋग्वेद में बहुत सी विदुषी महिलाओं का उल्लेख है। विश्ववारा, अपाला, घोषा एवं लोपामुद्रा आदि स्त्रियाँ वैदिक मंत्रों की रचना करने के लिए जानी जाती हैं।
- पर्दा प्रथा नहीं थी। बालविवाह नहीं होते थे। विधवाओं का पुनर्विवाह होता था इस लिए सती प्रथा प्रश्न ही नहीं उठता। धार्मिक और सामाजिक कार्यों में पत्नी की पति के साथ बराबर की सहभागिता होती थी।
- निःसंतान महिलाओं को नियोग की अनुमति थी। नियोग वह प्रथा थी जिसमें निःसंतान महिलाओं को विशेष परिस्थतियों में देवर आदि नजदीकी रिश्तेदार या विद्वान् व्यक्ति से संतान प्राप्ति का अवसर दिया जाता था।
- कुल मिलकर ऋग्वेदिक काल में स्त्रियों की दशा बहुत अच्छी थी।
- ऋग्वेदिक कबायली समाज तीन वर्गों में बंटा था –
- योद्धा,
- पुरोहित,
- सामान्यजन।
- चौथा वर्ग शूद्र ऋग्वेद काल के अंत में दिखलाई पड़ता है।
- वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति हो चुकी थी। यह विभाजन ऋग्वेदिक काल के अंतिम समय में हुआ। इसके अनुसार समाज को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों में बांटा गया। ऋग्वेद का प्रसिद्ध पुरुष सूक्त वर्ण व्यवस्था के दैवीय उत्पत्ति को बताता है। दशम मंडल का 90वां सूक्त पुरुष सूक्त है जिसके अनुसार परम पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय, पेट से वैश्य तथा जंघों से शूद्र वर्ण की उतपत्ति हुईं।
- प्रारंभ में वर्ण-व्यवस्था गुण और कर्म (व्यवसाय) पर आधारित था। व्यक्ति अपना व्यवसाय बदल कर वर्ण बदल सकता था।
आर्थिक स्थिति
- प्रारंभिक आर्य स्थायी जीवन नहीं जीते थे तथा घूमते रहते थे इसलिए पशुपालन मुख्य धंधा था। ऋग्वेद में खेती का उल्लेख बाद में जोड़े गए हिस्सों में मिलता है। इस प्रकार खेती कम महत्त्व का पेशा थी। गाय ही महत्वपूर्ण संपत्ति होती थी। गो दान का उल्लेख कईबार मिलता है लेकिन भू-दान का नहीं। ऋग्वेद में गाय के पर्यायवाची शब्दों का 176 बार उल्लेख हुआ है। गायों को लेकर ही ग्राम आपस में टकरा जाते थे (संग्राम)। गविष्टि अर्थात गायों की खोज का अर्थ ही युध्द हो गया था। गवेषण, गोषु, गव्य आदि शब्द युद्ध के पर्यायवाची हैं। राजा को गोपति कहते थे तथा धनी व्यक्ति गोमथ कहलाता था। पणि लोग अनार्य व्यापारी समूह से होते थे जो गायों की चोरी के लिए कुख्यात थे।
- बढई, रथकार, चर्मकार, कुम्भकार, बुनकर आदि भी होते थे।
- हरयाणा के भगवानपुरा और पंजाब के कुछ स्थानों से इस काल के चित्रित धूसर मृद्भांड मिले हैं।
- ऋग्वेदिक आर्य यव (जौ) की खेती करते थे। चावल के जो साक्ष्य मिले हैं वे सब उत्तर वैदिक काल के हैं।
धार्मिक स्थिति
- ऋग्वेदिक आर्यों में प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण करके उन्हें देवताओं का रूप दिया।
- स्तुति करना और यज्ञ में बलि या चढ़ावा देना देवताओं की उपासना की प्रमुख पध्दति थी।
- यज्ञाहुति में शाक और जौ डाली जाती थी। लेकिन याज्ञिक अनुष्ठान के समय मन्त्रों का उच्चारण नहीं किया जाता था, क्योंकि शब्दों में जादुई असर उतना नहीं माना जाता था, जितना की उत्तर वैदिक काल में।
- ऋग्वैदिक काल में देवताओं की उपासना केवल संतति, पशु, अन्न, धन तथा स्वास्थ्य की कामना के लिए ही की जाती थी। इस प्रकार ऋग्वैदिक उपासना का उद्देश्य भौतिकवादी था। पुनर्जन्म की अवधारणा विकसित नहीं हुयी थी।
- ऋग्वैदिक देवताओं में पहला स्थान इंद्र का है जो युद्ध में आर्यों का नेतृत्व करने वाला और किलों को तोड़ने वाला (पुरन्दर) था। इंद्र को वर्षा की भी देवता माना गया है।
- अग्नि एक मध्यस्थ देवता था जो हवन में डाले जाने वाले हवि को लक्षित देवता तक पहुँचाने का कार्य करता था।
- वरुण जल का देवता था। इसे ऋतस्य गोपा कहा गया है जो विश्व में व्यवस्था (ऋत) कायम रखता है। वरुण के कुपित होने से जलोदर रोग (ड्राप्सी) होना माना जाता था।
- सोम वनस्पति और मादक रस का देवता था। ऋग्वेद का 9वां मंडल सोम की स्तुति में है।
- मरुत आंधी का देवता होता था। पर्जन्य बादलों का देवता था।
- अदिति और उषा प्रातःकाल की देवियाँ थीं। अरण्यानी जंगल की देवी थी। पूषन पशुओं का देवता था।
- ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 सूक्त और अग्नि के लिए 200 सूक्त हैं।
- सविता या सवृत्रि सूर्य का देवता था। ऋग्वेद का गायत्री मन्त्र जो तीसरे मंडल में है इसी को समर्पित है।
Rinvaidik logo ke lokpriye devta kon tha
इंद्रदेव
Good
Conceptual knowledge
Bhoot accha hai bro aage bhi asi hi notes ko updete karte rho
Thanks
kya Bkwas likha hay. maine Ved pdha hay ,keshi inshan k baare may kai bhi kuch olekh nhi hay , ye jo bkwash likha yha uper May . ye sub maxmuller k kiye bhasye ka hay jishko thik se sunshkrit pdne bhi nhi aati thi.
ager Keshi k dum hay to ved Pr arya shmaaj k gyaniyo se debate kr k dhikhao
Bhahut achha ha
Superb
ऋग्वेद काल में प्रमुख देवता इंद्र था जिसका 250 बार उल्लेख किया गया और अग्नि को देवता का रूप नहीं माना गया है अग्नि को देवता तथा मनुष्य के बीच मध्यस्थता का संबंध बताया गया
Unki mukhya bhasha ya unke sachhya kuchh hain
उनके मुख्य भाषा का साक्ष्य केवल वेद ही है।