कार्बन चक्र

कार्बन चक्र

कार्बन चक्र: आत्मपोषी पौधो अर्थात् प्राथमिक उत्पादको द्वारा कार्बन, वायु से कार्बन डाई ऑक्साइड के रूप मे ग्रहण की जाती है। विविध पोषी जीव, कार्बन को विभिन्न कार्बनिक स्त्रोत (जैसे ग्लूकोज, सुक्रोस, लैक्टॉस, अमीनो अम्ल, पेप्टोस सेलुलोस) से प्राप्त करते है। वायुमंडल की मुक्त कार्बन डाइऑक्साइड सभी सजीवों के शरीर में उपस्थित समस्त कार्बन का स्त्रोत व अकार्बनिक कार्बन की मुख्य ग्राही है जो जल में घुलने पर कार्बनिक अम्ल बनाती है तथा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कच्चे माल का कार्य करती है यह सभी प्रकाश संश्लेषी व रसायन संश्लेषी जीवो द्वारा उपयोग की जाती है।

मूलतः सभी प्राथमिक उत्पादक कार्बन डाइऑक्साइड का प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा सरल कार्बोहाइड्रेट के रूप में स्थिरीकरण करते हैं। जो बाद में जटिल पॉलिसैकराइड, वसा, लिपिड, अमीनो अम्ल व प्रोटीन बनते हैं यही कोशिका के जीव द्रव्य का मुख्य अंश बनता है इन अणुओ के कुछ अंश को बनाता है।

इन अणुओ के कुछ अंश को स्वयं पौधों की श्वसन उपापचय क्रिया द्वारा तोड़ दिया जाता है। और कुछ कार्बन पुनः कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में मुक्त कर दी जाती है तथापि कार्बन का बहुत बड़ा अंश पौधे के जीव भारत में अनुपयोग एक रूप में तब तक पड़ा रहता है जब तक कि पौधे की मृत्यु ना हो जाए अथवा यह शाकाहारीओं द्वारा भोजन के रूप में खाना लिया जाए।

जब शाकाहारी पौधे या इसके भागों को खाते हैं तब कार्बनिक यौगिकों का कुछ भाग उत्सर्जन द्वारा त्याग दिया जाता है बचा हुआ भोजन शाकाहारीओं के शरीर में जमता है। वें कोशिकीय श्वसन द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड भी मुक्त करते हैं। इसी प्रकार यह क्रिया मांसाहारिओं में भी चलती है।

जीवो के मृत कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से कार्बन पुनः भौतिक वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में मुक्त हो जाती है।

यदि कोशिकीय श्वसन, अपघटन व जीवाश्म इंधनो के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण को पुनः प्राप्त ना हो तो केवल 1 वर्ष के भीतर ही संपूर्ण कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी से समाप्त हो जाएगी। पर्वतों के चुना पत्थरों में कार्बन की बहुत बड़ी मात्रा संग्रहित रहती है समुद्री वातावरण में जल प्लावक, वन्यजीव कार्बन कैलशियम कार्बोनेट के रूप में अपने सेल्स में एकत्रित करते हैं कार्बन की एक बड़ी मात्रा जीवाश्म से लंबे चक्रीय प्रक्रमो द्वारा प्राप्त की जाती है।

वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड वर्षा के जल में घुलकर कार्बनिक अम्ल का निर्माण करती है जो कैल्शियम युक्त चट्टानों से अभिक्रिया करके कैल्शियम बाई कार्बोनेट का निर्माण करती है इसका उपयोग स्वच्छ व समुद्री जल के जीवो के कैलशियम कार्बोनेट युक्त खोलो के निर्माण में होता है इन जीवो की मृत्यु के पश्चात इनके खोल समुद्री सतह पर इकट्ठे हो जाते हैं।

मानव द्वारा भोजन निर्माण के लिए अथवा उद्योगों में जीवाश्म इंधनोके जलाने से पिछले 150 वर्षों में वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 25% तक बढ़ गई है ऐसा अनुमान है कि यह वर्ष 2100 तक 4 गुनी हो सकती है।

ग्रीन हाउस प्रभाव

वायु की कार्बन डाइऑक्साइड बाहर जाती हुई विकिरण ऊष्मा को अवशोषित करके ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करती है।

ग्रीन हाउस प्रभाव विश्व तापमान उत्थान से सीधा संबंधित है। UNEP ने विश्व पर्यावरण दिवस पर 5 जून 1989 को लोगों को सचेत करने के लिए एक सही नारा विश्व तापमान उत्थान विश्व के लिए चेतावनी दिया है। यदि मानव के क्रियाकलाप जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाना व अविवेक पूर्ण ढंग से वनों का विनाष्टीकरण जारी रहे तो वातावरण का तापमान बढ़ता जाएगा तथा इसका भयंकर परिणाम पारिस्थितिकी असंतुलन के रूप में सामने आएगा।

विश्व तापमान उत्थान के फलस्वरूप ध्रुवों के बड़े हिमखंड पिघल जाएंगे। जिसके फलस्वरूप सभी समुद्रों के जलस्तर में 200 फीट तक की मात्रात्मक वृद्धि हो जाएगी और बहुत से दीपों का पृथ्वी किसे अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा साथ ही समुद्र तट क्षेत्रों के निचले प्रदेश भी जलमग्न हो जाएंगे।

अतः इसे संतुलित करने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में सुनियोजित कार्यक्रम द्वारा वृक्षारोपण ही वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर व ग्रीन हाउस प्रभाव को संतुलित करके विश्व तापमान उत्थान के प्रभाव को कम कर सकता है।

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