स्वतंत्रता आन्दोलन का तीसरा चरण 1919-1929

भारतीय राजनीति में गांधी जी के पदार्पण के बाद स्वतंत्रता आन्दोलन का एक नया दौर शुरू हुआ। अनेक कारणों से 1919 के बाद राष्ट्रीय आंदोलन ने एक जन आंदोलन का रूप ले लिया। भारत पर जबरदस्ती थोपे गए प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय जन-धन की बहुत बरबादी हुई।

इससे देश की दशा अत्यधिक खराब हो गई। इस कारण साम्राज्यवादी शासन के खिलाफ लोगों में रोष बढ़ा। जर्मनी, हंगरी और रुस में निरंकुश शासनों की समाप्ति के बाद भारतीयों की राष्ट्रीय आकांक्षाओं और उत्साह में भी में वृद्धि हुई।

स्वतंत्रता आन्दोलन में महात्मा गांधी का पदार्पण

लेकिन इस समय की सबसे बड़ी बात थी मोहनदास करमचंद गांधी का भारत की राजनीति में छा जाना। उनकी नेतृत्व क्षमता उत्कृष्ट थी। उन्होंने राजनीतिक-सामाजिक प्रतिरोध की नई तकनीक सत्याग्रह का इजाद किया।

उनकी रणनीति अहिंसात्मक परंतु अत्यंत क्रांतिकारी और कारगर थी। अपने नैतिक साहस, जनता पर मजबूत पकड़ तथा परिस्थितियों की सही समझ के कारण वे भारत के सर्वोच्च नेता बन गए।

दक्षिण अफ्रीका प्रवास

महात्मा गांधी 1894-1914 तक दक्षिण अफ्रीका के प्रवास पर रहे। वहां वे प्रवासी भारतीयों के पक्ष में वकालत करने गए थे। दक्षिण अफ्रीकी सरकार की नस्लीय भेदभाव की नीतियों के विरुद्ध उन्होंने जमकर संघर्ष किया। इसी समय अहिंसात्मक प्रतिरोध पर आधारित सत्याग्रह की कार्यविधि को आकार मिला।

गांधी जी जनवरी 1915 में भारत आए। 1916 में अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की।

1917 में चंपारन बिहार में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया। चंपारण के नील उत्पादक किसानों पर यूरोपीय जमींदार अत्याचार करते थे। गांधी जी के हस्तक्षेप से मामला सुलझ गया।

रौलट एक्ट और उसके बाद की गलतियों के कारण भारत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ जनअसंतोष काफी बढ़ा। जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद गांधी जी बहुत दुखी होकर कहना पड़ा : अंग्रेजी सरकार शैतान है, उसके साथ सहयोग नहीं किया जा सकता। इस प्रकार वे अंग्रेजों के सहयोगी से असहयोगी बन गए।

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खिलाफत आन्दोलन (1919-22)

खिलाफत आंदोलन भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में एक नये उफान के रूप में आया। इसके द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिम समुदाय की भागीदारी बढ़ी। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार हुई। इसके बाद खलीफा का पद समाप्त कर दिया गया।

खिलाफत दुनिया भर के मुसलमानों की आध्यात्मिक एकता की प्रतीक थी। इसलिए खिलाफत के भंग होने से भारतीय मुसलमान नाराज हो गए। 1919 में खिलाफत कमेटी का गठन किया गया। मुहम्मद अली और शौकत अली (जो अली बंधु के नाम से प्रसिद्ध हुए) खिलाफत बहाली आंदोलन के मुख्य नेता थे।

खिलाफत आंदोलन हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने का सुनहरा अवसर था इसलिए गांधी जी और कांग्रेस ने इसे पूरा पूरा समर्थन दिया। 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन एक साथ चलते रहे। लेकिन तुर्की के चमत्कारी नेता मुस्तफा कमालपाशा ने खलीफा की सत्ता को समाप्त कर दिया। इससे खिलाफत आंदोलन स्वत: समाप्त हो गया।

असहयोग आंदोलन (1920-1922)

रौलट एक्ट, जालियांवाला बाग हत्याकांड, सरकार की दमनकारी नीतियों और खिलाफत के प्रश्न पर लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में 1920 में कलकत्ता में विशेष अधिवेशन बुलाया गया। इस अधिवेशन में महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक असहयोग आंदोलन चलाने का निर्णय लिया गया।

उद्देश्य

पंजाब और तुर्की के साथ हुए अन्यायों का प्रतिकार और स्वराज्य की प्राप्ति, असहयोग आंदोलन के ये दो उद्देश्य थे।

कार्यक्रम

इस आंदोलन को कई चरणों में चलाया जाना था। प्रथम चरण  में सरकार द्वारा दी गई उपाधियों को वापस किया जाना था।

दूसरे चरण  में विधानमंडलों, अदालतों और शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार करने का प्रस्ताव था।

तीसरे चरण  में कर नहीं चुकाने का अभियान चलाया जाना था।

यह भी तय किया गया कि असहयोग आंदोलन को चलाने के लिए डेढ़ लाख स्वयंसेवकों का एक दस्ता तैयार किया जाएगा।

आंदोलन की व्यापकता

असहयोग आंदोलन को अपार सफलता मिली। विधानमंडलों के चुनावों में लगभग दो तिहाई मतदाताओं ने मतदान नहीं किया। सरकारी स्कूल कालेज खाली हो गए। राष्ट्रीय शिक्षा का एक नया कार्यक्रम आरंभ किया गया। जामिया मिलिया और काशी विद्यापीठ जैसी संस्थाओं की स्थापना की गई।

अनेक लोगों ने सरकारी नौकरी छोड़ दी। वकीलों और जनता ने अदालतों का बहिष्कार किया। विदेशी कपड़ों को जलाया गया। पूरे देश में हड़तालें हुईं। असहयोग आंदोलन के दौरान प्रिंस आफ वेल्स भारत आया। जब वह 17 नवंबर 1921 को भारत पहुंचा तो हर जगह उसका स्वागत आम हड़ताल और प्रदर्शनों से हुआ।

असहयोग आंदोलन का दमन

अनेक जगहों पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। लगातार दमन जारी रहा। साल भर के अंदर गांधी जी को छोड़कर कांग्रेस के बाकी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे। 1922 के शुरू में लगभग 30000 लोग सलाखों के पीछे थें।

अहमदाबाद अधिवेशन

सरकारी दमन के बावजूद असहयोग आंदोलन जोर शोर से जारी था। दिसंबर 1921 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ। इसके अध्यक्ष हकीम अजमल खां थे। अहमदाबाद कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन को तब तक जारी रखने का फैसला लिया जब तक पंजाब और तुर्की में अंग्रेजों द्वारा की गई गलतियों का प्रतिकार नहीं हो जाता और स्वराज्य प्राप्त नहीं हो जाता।

चौरी-चौरा कांड

फरवरी, 1922 के प्रारंभ में गांधी जी ने गुजरात के बारदोली में कर न चुकाने का अभियान चलाने का फैसला किया था, परंतु 5, फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा नामक स्थान पर पुलिस के साथ टकराव में जनता हिंसक हो गई और थाने में आग लगा दी गई। जिसमें 21 सिपाहियों सहित कुल 22 पुलिस कर्मी जलकर मर गए। आंदोलन के हिंसक होने से गांधी जी अत्यंत दुखी हुए और पूरे देश में असहयोग आंदोलन रोकने की घोषणा कर दी।

12, फरवरी 1922 को बारदोली में कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक हुई जिसमें असहयोग आंदोलन रोकने के गांधी जी के निर्णय को सहमति देनी पड़ी। वर्किंग कमेटी ने चरखे को लोकप्रिय बनाने, छुआछूत दूर करने तथा हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने पर ध्यान देने का फैसला लिया।

असहयोग आंदोलन रोके जाने के गांधी जी के फैसले से अनेक नेता दुखी थे। सरकार के पास मौका था। गांधी जी गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें छः वर्षों की जेल हुई। हालांकि वे दो वर्ष बाद ही जेल से छोड़ दिए गए।

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स्वराज्य पार्टी

असहयोग आंदोलन की वापसी से असंतुष्ट सी आर दास एवं मोतीलाल नेहरू आदि ने दिसंबर 1922 में स्वराज्य पार्टी का गठन किया और फैसला किया कि वे विभिन्न विधानमंडलों के चुनावों में भाग लेंगे जिसका वे अभी तक बहिष्कार करते आ रहे थे।

उनका उद्देश्य था कौंसिलों में प्रवेश कर इनको अंदर से ठप्प कर दिया जाए जब तक कि जनता की मांगें मान नहीं ली जातीं। स्वराज्य पार्टी ने 1923 के चुनावों में भाग लिया और अच्छी सफलता भी प्राप्त की। मध्य प्रांत और बंगाल में स्वराज्य दल को बहुमत मिला।

विधानपरिषदों के अंदर मंत्रियों के कार्यों में बाधा डालने का कार्य जोर शोर से शुरू हुआ। लेकिन चूंकि विधानपरिषदों में गैर-सरकारी बहुमत छलावा मात्र था इसलिए सरकारी कार्यों में व्यवधान पैदा नहीं किया जा सका। धीरे-धीरे स्वराज्य दल के लोग गांधी जी के निकट आ गये।

साइमन कमीशन

भारत में प्रशासनिक व्यवस्था की जांच कर अपेक्षित सुधारों की अनुसंशा करने के लिए 1919 के अधिनियम की एक धारा के अनुसार दस वर्ष में एक आयोग का गठन किया जाना था। लेकिन दो साल पहले ही 1927 में सर जान साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया गया।

इसके सभी सदस्य यूरोपीय थे। इसमें एक भी भारतीय को नहीं रखा गया था। ऊपर से लार्ड बिरकनहैड के इस वक्तव्य ने आग में घी का काम किया कि भारतीय किसी भी मसले पर एक नहीं हो सकते। साइमन कमीशन 1928 में भारत पहुंचा। जहां-जहां साइमन कमीशन गया उसके विरोध में प्रदर्शन हुआ।

लाहौर में एक ऐसे ही प्रर्दशन का नेतृत्व करते समय लाला लाजपत राय पुलिस की लाठी से गंभीर रूप से घायल हो गए। बाद में उनकी मृत्यु हो गई।

साइमन कमीशन के विरोध के दौरान भारत में राजनीतिक सक्रियता एवं बहुदलीय एकता बढ़ी। 1928 में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया गया

नेहरू रिपोर्ट 1928

लार्ड बरकनहैड की इस चुनौती को कि भारतीय सांवैधानिक मसलों पर एक नहीं हो सकते स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं द्वारा गंभीरता से लिया गया।

19 मई 1928 को पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारतीय संविधान का आधार निश्चित करने के लिए एक समिति बनाई गई, जिसमें सर तेज बहादुर सप्रू, सर अली इमाम, एम एस अणे मंगल सिंह, शवेब कुरैशी, जी आर प्रधान और सुभाष चंद्र बोस थे।

इस समिति ने 10 अगस्त 1928 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसे नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है। इसमें औपनिवेशिक स्वराज्य, केंद्र में पूर्ण उत्तरदायी शासन, प्रांतीय स्वायत्तता, मौलिक अधिकार आदि जैसे अनेक विषय शामिल थे।

पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य

1929 के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता पंडित जवाहर लाल नेहरू ने की। इसी अधिवेशन में गांधी जी तथा अन्य नेताओं के सुझाव पर पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया गया। भारत को एक साल के भीतर डोमेनियन स्टेटस प्रदान करने की मांग रखी गई तथा 26, जनवरी 1930 को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।

स्मरणीय तथ्य

  • गांधी जी दक्षिण अफ्रीका प्रवास से जनवरी 1915 में भारत वापस आए।
  • 1916 में अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की।
  • चंपारण सत्याग्रह 1917 भारत में गांधी जी का पहला बड़ा आंदोलन था।
  • रौलट एक्ट 1919 में पारित हुआ।
  • जालियांवाला बाग हत्याकांड 1919 में हुआ।
  • खिलाफत आंदोलन 1920 में हुआ। इसके नेता अली बंधु थे।
  • असहयोग आंदोलन 1920 मे शुरू हुआ।
  • कांग्रेस के कलकत्ता विशेष अधिवेशन 1920 में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे।
  • चौरी चौरा की घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया।
    चौरी चौरा कांड 05 फरवरी 1922 को हुआ।
  • साइमन कमीशन का गठन 1917 में हुआ।
  • साइमन कमीशन 1928 में भारत आया।
  • सर्वदलीय सम्मेलन और नेहरू रिपोर्ट 1928.
  • पूर्ण स्वराज्य की मांग कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1928 में की गई। इस अधिवेशन के अध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू थे।
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